रियल रिजनल क्षत्रप बन गए नीतीश
संजय मिश्र//
एक दिन ने इतनी राजनीतिक हलचल कभी-कभार ही देखी होगी। जहां दिल्ली में राजनीति इठला रही थी वहीं पटने में ये छुई -मुई सी हो रही थी। सुपर-डुपर सन्डे यानि 04-11-12 को दिल्ली से ज्यादा राजनीतिक रंग पटने ने देखे जहां देश के अगले पी एम की रेस के तीन दावेदार
जमे थे। अड़चनों से पार पाते नीतीश कुमार गांधी मैदान में अधिकार रैली में जब अपने समर्थकों को निहार रहे थे तो उनके मुख-मंडल पर संतोष के भाव झलक रहे थे। राहत मिली थी दो महीने की उथल-पुथल भरी जद्दोजहद से। सकून ये कि दिल्ली की गद्दी की महत्वाकांक्षा के लिए जिस हैलीपैड की जरूरत है वो चाहत साकार हुई। परसेप्सन वाले रिजनल क्षत्रप होने के दिन अब लद गए हैं। नीतीश कुमार का रियल रिजनल
क्षत्रप के रूप में अवतरण हो गया है।
दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस ने भी इसी दिन अपनी ताकत दिखाई। 16 अगस्त 2011 को इसी रामलीला मैदान में अन्ना के चाहने वाले जन सैलाब ने जो चुनौती राजनीतिक जमात के लिए पेश की थी उससे उबरना कांग्रेस के लिए जरूरी था। ये पार्टी अपनी लाज बचाने में
कामयाब रही। उत्साह में अगले आमचुनाव का शंखनाद हो चला। नीतीश के लिए यहाँ भी राहत के क्षण आए। रामलीला के मुकाबले
गांधी मैदान में जुटान अधिक रही। यानि मोल-भाव के लिहाज से मुफीद अवसर के संकेत। नीतीश ने हुंकार भरते हुए मार्च में दिल्ली कूच करने का ऐलान कर दिया। साथ ही जब उन्होंने पिछड़े राज्यों को विशेष
राज्य के दर्जे की मांग के लिए गोलबंद करने की घोषणा की तो राजनीतिक निहितार्थ स्पष्ट झाँकने लगे।
जाहिर है इस राजनीतिक ध्रुवीकरण की जद में ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और शिबू सोरेन जैसों को साधा जा सकता है।
शतरंज की बिसात बिछ चुकी है। नीतीश की रणनीति है कि मौजूदा राजनीतिक गठबंधनों के अलावा संभावित तीसरे मोर्चे में स्वीकार्यता का विकल्प कायम हो। लेकिन इसके लिए मास लीडर होने का तमगा
जरूरी था। अधिकार रैली की सफलता ने ये तमगा दे दिया है। बिहार को समझने वाले जानते हैं कि नीतीश की राजनीतिक यात्रा सवर्णों के दृढ़ लालू विरोध और बीजेपी के मजबूत संगठन के
आसरे टिका रहा है। जे डी यू संगठन के मामले में बेहद कमजोर था। लेकिन विशेष राज्य की मुहिम के बहाने पूरा जोर संगठन को मजबूत करने पर लगा रहा। कड़ी मेहनत रंग लाई। गांधी मैदान में जब नीतीश
समर्थको को संबोधित कर रहे थे तो यही कठिन परीक्षा पास कर लेने का सकून था।
राजनीतिक बिम्ब के लिहाज से देखें तो पिछड़े राज्यों के विकास का मुद्दा अब सतह पर आ चुका है। हर हिन्दुस्तानी को तरक्की करने का हक़ जैसे नारे आने वाले समय में गूंजेंगे।
सोच-समझ कर ही उसी तारीख
और उसी गांधी मैदान में अधिकार रैली रखी गई जहाँ से जे पी ने इंदिरा को चुनौती दी थी।
दिलचस्प है कि इसी दिन पी एम पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी दिवंगत कैलाश पति मिश्र को श्रधांजलि देने पटना पहुंचे। बीजेपी कार्यकर्ताओं ने ग़मगीन माहौल में भी -देश का पी एम कैसा हो नरेन्द्र
मोदी जैसा हो – जैसे नारे लगा कर राजनीतिक कशमकश को गरमा दिया। कुछ ही देर बाद आडवाणी ने पटने में ही नीतीश की
तारीफ़ कर चौंका दिया। जाहिर है आडवाणी के पी एम पद की होड़ में होने का जे डी यू समर्थन करता है… मोदी को किनारे करने के लिए। नीतीश ने भी दिवंगत बीजेपी नेता को मंच से ही
श्रधांजलि देकर ये जता दिया कि सारे ऑप्शन खुले हैं। लालू का छटपटाना स्वाभाविक है। नीतीश से भी अधिक भीड़ जुटा कर कभी इतिहास रचने वाले लालू अब कांग्रेस खेमे में कमजोर पड़ते
जाएंगे। उधर, विशेष राज्य के अभियान से आस लगाने वाली जनता को अब तक अहसास हो चुका होगा कि
ये मुद्दा पृष्ठभूमि में जा चुकी है और इसकी डगर कठिन है।