लिटरेचर लव
लिखा – अनलिखा (कविता)
बदहवासी में छोड़ आता सागर सीपियों को
तट पर,
फिर उन्हीं की चाहत उसे खींच लाती बार बार,
लागातार
और दम तोड़ती लहरें यह बात समझ नहीं पातीं कि
क्यों कर अलग हुए और
अब बिछड़कर रहना इतना मुश्किल
फिर क्या जीवन भर
यूं ही,
तड़पना और लहरों का दम तोड़ना
एक शश्वत सत्य बन जायेगा?
क्या कभी वह सुबह होगी ,
जब सीपियों को अपने आगोश में लहरें समेट पायेंगी?
और पूरी होगी सागर की चाहत?
शायद नहीं ,
क्योंकि
एक अफसाना यह है
जीवन में जिनका साथ छूट जाता है
वो कभी किनारे पर होकर भी
अपने नहीं हो पाते
समय को पहचान कर, ये मान कर तभी
साथ रहती रेत और हवायें
कहती तुम लिखों और हम मिटाएं….
अपना वजूद कभी खतम न होने पाए…!
kafi acchi aur bhavuk kavita,sabdo ka chayan utkrist hai….badhai
Anita ji first time you have worked on emotion and feeling . Good job great writing . God bless you .
अंतिम सात पंक्तियों मे दिया निष्कर्ष ‘सत्याभिव्यक्ती’है।
बुल्कुल सही लिखा है आपने ” यसे में कभी वो कभी साथ होते ही नहीं” क्यों की साथ जो होते है यो जुदा नाह हो पते…