होमगार्ड के हवाले बिहार की अग्नि शमन व्यवस्था

1
22

कहा जाता है कि जब रोम जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था। बिहार अग्नि शमन दस्ता भी कुछ इसी तर्ज पर काम कर रहा है। अग्नि शमन के आफिस में फोन की घंटी बजती रहती है लेकिन खैनी चूना मलते हुये कर्मचारी फोन नहीं उठाते हैं। कम से कम लोदीपुर फायर स्टेशन की स्थिति तो यही है। ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी बड़े आराम से पड़े रहते हैं और फोन  की घंटी बजती रहती है।  

इस फायर ब्रिगेड के आफिस को देखते हुये कहा जा सकता है कि शायद फायर ब्रिगेड के अधिकारियों को अपने कर्मचारियों पर इतना यकीन है कि वे खुद दफ्तर आना मुनासिब नहीं समझते। लगभग सभी बड़े अधिकारियों के कमरे में ताला लटका होता है, रोज-रोज दफ्तर आने की जरूरत तो वे महसूस करते ही नहीं है, और आये भी क्यों?  अब रोज रोज आग तो लगती नहीं है, और जब आग लगती है तो वे खुद तो बुझाने जाते नहीं है। ऐसे में दफ्तर आने की जरूरत क्या है।

लोदीपुर फायर ब्रिगेड कार्यालय में गाड़ियों की संख्या तो ठीक ठाक है, और पाइप भी हैं, लेकिन इन गाड़ियों को सुरक्षित तरीके से रखने के लिए गैरेज नहीं है। अग्नि शमन की तमाम गाड़ियां बाहर खुले आकाश के नीचे ही खड़ी रहती हैं। धूम और पानी की वजह से इनके जल्द ही खराब होने की संभावना बनी रहती है। फायर ब्रिगेड के कर्मचारी भी मानते हैं कि इन गाड़ियों को रखने के लिए गैरज जरूरी है।

अग्नि शमन दस्ता में होम गार्ड के जवानों को लगाया गया है, जिनके पास आग बुझाने का ठीक से प्रशिक्षण भी नहीं है। फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों के लिए भी नियमित प्रशिक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है। फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों की अपनी शिकायत है। दूर-दूर तक जाकर आग बुझाने वाले फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों को इस बात का मलाल है कि अभी तक उनके रहने सहने की दुरुस्त व्यवस्था भी नहीं की गई है। उन्हें बैरक में रहना पड़ता है, जहां काफी मुश्किलें आती हैं।

 लोदीपुर फायर ब्रिगेड कार्यालय काफी बदहाल स्थिति में है। वैसे इसका आधुनिककरण करने की बात लंबे समय से चल रही थी और दिशा में काम भी शुरु हो गये थे। तीन साल पहले नई ईमारत का ढांचा तो खड़ा कर दिया गया, लेकिन बाद में अचानक काम रोक दिया गया। आज भी स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। ढांचा तो है लेकिन इमारत गायब है।

गर्मी के मौसम में आग लगने की घटनाओं में तेजी से वृद्धि होती है। बिहार अग्नि शमन सेवा के सूचना पदाधिकारी रमेश चंद्र की माने तो फायर ब्रिगेड भी इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए गर्मी पड़ते ही जोरदार तैयारी में लग जाते हैं। शहर की झुग्गी झोपड़ियों में अक्सर आग लग जाती है, जिसकी वजह से व्यापक पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है। झुग्गियों के एक साथ बनने की वजह से आग को चारो ओर फैलने में देर नहीं लगती है। संकरी गली होने की वजह से फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को आग लगने के स्थान  तक पहुंचने में भी कठिनाई होती है। यही वजह है कि फायर ब्रिगेड की ओर से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को बार-बार सावधानी बरतने की हिदायत दी जाती है।

 पटना में झुग्गियों की अच्छी खासी संख्या है, लेकिन इन्हें आग से बचाने की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है। रेलवे ट्रैक के किनारे बनी झुग्गियों तक तो फायर ब्रिगेड की गाड़ियों के पहुंचने तक की व्यवस्था नहीं है। आग लगने की स्थिति में यहां रहने वाले लोग अपने आप को पूरी तरह से बेबस महसूस करते हैं। वैसे अपनी ओर से वे पूरी कोशिश करते हैं कि खाना बनाने के लिए आग जलाने के दौरान उनसे कोई असावधानी न हो।

झुग्गियों में टोका फंसाकर अवैध रूप से बिजली की चोरी भी खूब होती है। इसके अलावा लोग बीड़ी और सिगरेट का इस्तेमाल भी खूब करते हैं। यही वजह है कि झुग्गियों में आग लगने की संभावना थोड़ी बढ़ जाती है।

पटना में ऊंची बिल्डिंगे भी बहुत बड़ी संख्या में बन रही हैं। यदि फायर ब्रिगेड के अधिकारियों की माने तो अब लोग इन बिल्डिंगों में अग्नि शमन व्यवस्था को लेकर जागरुक होने लगे हैं। लोग ऐसे फ्लैट खरीदने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जहां आग लगने पर फायर ब्रिगेड की गाड़ियां सहजता से पहुंच सके।

अग्नि शमन विभाग से इतर आपदा प्रबंधन विभाग के विशेष पदाधिकारी गगन का मानना है कि बहुमंजिली सार्वजनिक भवनों में आग बुझाने की व्यवस्था दुरुस्त नहीं है। इन बिल्डिंगों में अग्नि शमन की रोकथाम पर खासा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। एक कमेटी बनाकर ऐसे बिल्डिंगों को चिन्हित करने की जरूरत है जहां नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है।

पटना की ट्रैफिक भी काफी सघन हो गई है। कभी-कभी तो सड़कों पर सरकने तक की जगह नहीं होती। ऐसी स्थिति में यदि कहीं आग लगती है तो फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को पहुंचने में काफी दिक्कत होती है। यहां के लोग भी इन गाड़ियों को आसानी से रास्ता नहीं देते हैं। लोगों के असहयोग से फायर ब्रिगेड के अधिकारियों के चेहरे पर शिकन बनी रहती है।

फायर ब्रिगेड का नंबर 101 का इस्तेमाल भी लोग मजाक में करने से नहीं चूकते हैं। अक्सर 101 पर डायल करके लोग फायर ब्रिगेड को उल्टा सीधा बोलते रहते हैं। इसकी शिकायत पुलिस में भी की जाती है, लेकिन पुलिस वाले भी इसे रुटीन मान कर कोई कार्रवाई नहीं करते।

बिहार में पिछले एक महीने में अब तक अगलगी की करीब 237 घटनाएं हुई हैं, सरकारी दावों को अनुसार केवल 5 लोगों की मौत हुई है, पटना के आर ब्लौक में भीषण आग लगने से 200 घर स्वाहा हो गये। यहां पहुंचने में फायर ब्रिगेड को करीब एक घंटा लगा। 

 गर्मी का मौसम आते ही राजधानी पटना समेत अगल बगल के ग्रामीण  इलाकों में आग लगने की घटनायें शुरु हो जाती है। हाल ही में  पटना के नेता जी सुभाष चन्द्र मार्ग  के किनारे बने झोपड़ियों में भीषण  आग लग गई जिसने देखते ही देखते भयावह रूप अख्तियार कर किया। देखते ही देखते आग ने पास लगे पेड़ों को भी अपनी चपेट में ले लिया। लोगों ने मुताबिक़ आग खाना बनाने के दौरान लगी जिसके  बाद इन लोगो ने दमकल को आग  लगने की सूचना दी।  मगर मौके पर पहुंची दमकल में आग पर काबू पाने के लिए पानी ही नहीं था जिसके चलते आग को फैलने का मौका मिला और आग ने  पास की झोपडियो को भी अपनी गिरफ़्त में ले लिया। दो दर्ज़न से ज्यादा झोपडिया जल के खाख  हो गई है। लोगों के झुलसने के साथ-साथ कई मवेशी भी इसकी चपेट में आ गये है। बाद में दमकल की पांच गाड़ियो ने मौके पर पहुच कर आग पर काबू पाया।

 इसी तरह पटना  के आर ब्लाक के करीब रेलवे लाइन के बगल में सैंकड़ों झोपड़िया जल कर राख  हो गयी. आग लगने का कारण था गैस सिलेंडर का फटना। मौके पर पहुची कई दमकल गाड़िया भी आज बुझाने में नाकाम साबित हुई .इस अगलगी में 2 लोग बुरी तरह से झुलस गये। मौके पर पहुंची राहत की टीम लगातार आग बुझाने की कोशिश में लगी है.लोगों का कहना है की घर का सारा सामान जल कर लाख हो गया है.

 कभी-कभी सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं से आक्रोशित भीड़ वाहनों को आग के हवाले कर देते हैं, जिनपर काबू पाना मुश्किल होता है। ऐसे में सड़कों पर चलने वाले वाहनों की आवाजाही तो ठप होती है। कानून और व्यवस्था की स्थिति भी दयनीय हो जाती है। हाल ही में दानापुर में गुस्साई भीड़ ने एक साथ कई वाहनों को फूंक दिया था, जिसके बाद सड़कों पर देर तक तमाशा होता रहा।

खेतों और खलिहानों में लगने वाली आग तो किसानों की फसलों को बुरी तरह से तबाह कर देती है। जरा सी असावधानी की वजह से उनकी मेहनत देखते ही देखते खाक हो जाती है। इन फसलों में लगी आग पर काबू पाने के लिए शायद ही कभी समय पर फायर बिग्रेड की गाड़ियां पहुंचती है। बाद में मुआवाजे के नाम पर उन्हें कुछ रकम देने की घोषणा तो कर दी जाती है, लेकिन मुआवजा भी  शायद ही उन्हें मिल पाता है।

1 COMMENT

  1. पहली बात तो ये कहनी है कि अग्नि शमन को छोड़िए, ये बताइए कि किस विभाग की हालत अच्छी है। विधायक निधि खत्म कर के मुख्यमंत्री निधि शुरु हो गयी है। चलिए एक और खबर पता चली। लेकिन मैंने कभी नहीं सुना है कि कभी किसी विधायक, सांसद, मंत्री, बड़े उद्योगपति के यहां आग लगती है। जिनके घर आग में जलते हैं वे जानें, सरकार को क्या? बिहार राज्य अगर देश होता तो यहां गुल्ली-डंडा से सीमाओं पर लड़ाई करवाते हमारे मूर्खमंत्री।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here