लुकस टेटे की जगह कोई वीआईपी होता तो सरकार क्या करती ???

अनिकेत प्रियदर्शी, पटना

लुकस टेटे अब हमारे बीच नही हैं, लेकिन लुकस टेटे अब हर उस भारतीय के दिल में है, जिसने भारत को प्यार किया है । नक्सलियों की कायरता एवं बर्बरतापूर्ण कृत्यों ने लुकस टेटे की बलि ली। जरूरी नहीं है कि कोई साहस लेकर जन्मा हो, लेकिन हरकोई शक्ति लेकर जन्मता है । लुकस टेटे शक्ति और साहस दोनों के प्रतीक बने और देश पर अपने प्राणों को न्यौछावर किया। लुकस टेटे अमर हो गये। पर कहीं न कही ये बात दिल मे टीस बनकर उभर रही है कि क्या लुकस टेटे को बचाया नहीं जा सकता था ? टेटे की जगह अगर कोई मंत्री या बड़ी हस्ती को नक्सलियों ने बंधक बनाया होता तो भी क्या ऐसी ही स्थिती रहती ? पर शायद टेटे आज की उस राजनीति का भी शिकार बन गये जिसमें विपत्तियों को खोजने, उसे सर्वत्र प्राप्त करने, गलत निदान करने और अनुपयुक्त चिकित्सा करने की कला होती है ।

 आज हमारे देश के गृहमंत्री हो या राज्यों के मुख्यमंत्री, ये सभी अपनी राजनीति को कमजोर नहीं करना चाहते है। तभी तो छ्त्तीसगढ के दंतेवाड़ा, ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस दुर्घटना तथा और भी कई जगहों पर पिछले कुछ समय से जो कार्रवाई नक्सलियों द्वारा की गई उसका अभी तक कोई माकूल जवाब सरकार के पास नहीं है । आज राजनीतिक लाभ के लिए नेतागण आये दिन अलगाववाद की बातें करते रहते हैं, ऐसे में तो वो दिन भी दूर नही जब भारत में नक्सली, माओवादी, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना, रणवीर सेना, श्रीराम सेना, और न जाने कितने ही असामाजिक तत्व मिलकर इस देश को तहस नहस कर देंगे।

 जनवरी से जून के दौरान वाम उग्रवादियों की 1103 हिंसक वारदात हुईं जिनमें 97 उग्रवादी मारे गए और 1341 गिरफ्तार किए गए। इन वारदातों में 209 सुरक्षा जवानों की भी मौत हुई। आखिर अब तक सरकार की तरफ से इसे रोकने के लिए कोई विशेष पहल क्यूं नही की जा रही है ? 14 जुलाई 2009 को केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि, ”आज नक्सल गंभीर चुनौती पेश कर रहे हैं । हम उनसे सामना करने की तैयारी कर रहे हैं । मैं इससे अधिक कुछ नहीं कह सकता ।” और आज ? क्या आज भी वो कुछ अधिक कह पाने की स्थिती में नहीं है? गृह सचिव जी. के. पिल्लई ने 5 मार्च 2010 को कहा था कि वर्ष 2050 तक नक्सली भारतीय राज्य को उखाड़ फेंकना चाहते हैं।

 पिल्लई ने स्वीकार किया था कि नक्सलवाद प्रभावित राज्यों में नक्सलियों को कुचलने की स्थिति में आने में अभी सात से 10 वर्ष लगेंगे। तो क्या हम ऐसे ही अपने जवानो को एक एक करके नक्सलियों की भेंट चढ़ाते रहे ? आज एक बात ये भी सत्य है कि सरकार को अपने विषय मे कुछ खराब सुनना पसंद नही आता है, अपने विषय में कुछ कहना प्राय:बहुत कठिन हो जाता है, क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है पर उस दोष को अनदेखा करना औरों को भी तो अप्रिय लगता है ।

 विश्वास करें ये नक्सली बिलकुल उन तालिबानियों जैसे ही होते जा रहे हैं, अगर इनको अभी नियंत्रित नहीं किया गया तो, आज जो हालात पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के है, वही हालात भारत का भी हो जाएगा और इसके जिम्मेदार हम सभी होंगे मगर सबसे ज्यादा जिम्मेदार हमारी आज की सरकार ही मानी जाएगी । क्यूंकि आप तो आज भी ये मानते है कि नक्सली हमारे अपने है । और यही अपने, उस धारा में विश्वास ही नहीं करते जिनमें इन्हे लाने का आपके द्वारा प्रयास किया जा रहा है । ये अपने बड़े ही आराम से अपनी विध्वंसक घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं और बड़े आराम से अपनो का खून बहाते जा रहे है। मूल तौर पर नक्सलवाद का जन्म जिस सोच के साथ हुआ था वो सोच ज्यों ज्यों नक्सलवाद बढ़ता गया, बदलती चली गयी ! नक्सलवाद आज एक देशी आतंकवाद के रूप मे उभर कर सामने आया है जिनका एक ही उदेश्य है दहशत और तबाही !

 नक्सलवाद पर सरकार की नींद टुटनी चाहिए, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब सभी मौत की नींद सोएंगे और विश्वास माने तो ये नक्सली आने वाले दिनो में किसी बड़ी हस्ती को निशाना बना ले तो कोई बड़ी बात नहीं होगी । आख़िर कब तक सोती रहेगी सरकार और ऐसे ही कब तक हमारे जवान शहीद होते रहेंगे? याद करें छ्तीसगढ में 1000 नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था। ये क्या किसी युद्ध से कम भयावह था ? आज पश्चिम बंगाल में नक्सालियों का हमला होता है तो ममता बनर्जी नक्सलियों से तुरंत बात करने की सलाह देती हैं । और तो और लगे हाथों केंद्र सरकार को उपदेश देकर बंगाल की सियासत में दखल न देने के लिए अपनी चिर-परिचीत धमकी भी दे जाती है, लेकिन विडंम्बना देखे वहीं यह हमला आज बिहार में हो रहा है तो केंद्र सरकार राज्य पुलिस व्यवस्था को अक्षम बताती है ।

 आज हालत यह है कि ममता, माओवादी, मार्क्सवादी के बीच उलझे  मामले ने  भारत सरकार को भी एक कदम आगे और दो कदम पीछे चलने पर मजबूर कर दिया है। नक्सलियों ने केवल तलवारों तथा बंदूकों की भाषा सिखी है और तलवारों तथा बंदूकों की आँखें नहीं होती हैं। इन नक्सलियों ने कहीं न कहीं अपने हाथ बंद कर दिए है और मुट्ठियां बाँध कर आप किसी से हाथ नहीं मिला सकते | जान ले… बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय । रहिमन फाटै दूध को, मथे न माखन होय॥

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