आज मैंने एक सपना देखा …(कविता)
आज ठंडी रात में
मैंने एक सपना देखा
तुम मेरे पहलू में लेटी हो
और मुझे जगा रही हो
कह रही हो की कुछ
मजबूरियां तुम्हारी भी है
और मेरी भी
पर तुम अब तक
सपने में मुझे देखते हो
तुम्हारे प्यार पर कोई शक नहीं
न ही तुम पर मैंने कभी किया
ये दौर ये वक्त कुछ ऐसा ही है
जहां प्यार और भी बदनाम
और शर्मशार हुआ है
तिस पर भी बैलोस
मुहब्बत करते हो
बहुत कुछ ऐसा हो रहा है
जिनसे मानवता तार-तार हो रही है
कहीं जया तो कहीं दामिनी
की आबरू बे-आबरू हो रही है
लोग प्यार को भी आजकल
तिरछी सी या कहूँ तो
घृणा की नज़रों से देखने लगे हैं
ऐसे में हिम्मत कर मैं
आई हूँ और जगा रही हूँ तुम्हें
उठो उठो फिर प्यार का
विश्वास का साम्राज्य कायम करो
जब मैंने आखें खोली
कुछ नहीं था
वहम के सिवा
पर मेरे बिस्तर की
सिलवटें इस बात की
गवाह थी की वहां कोई था
और कुछ नहीं तो
मेरा वहम ही सही
जो उसे अब तलक
याद तो रखे हुये है .
(@कुलदीप सिंह ‘दीप’ )
20/01/2013 .