ओलंपिक में इतिहास रचने के इरादे से कोसो दूर है भारत

लक्ष्य के बारे में सबसे ज़रूरी चीज है कि वह होना चाहिए…क्या एक अरब 20 करोड़ लोगों की उम्मीदों का भार लिए भारतीय रणबांकुर लंदन ओलंपिक में किसी लक्ष्य के साथ गये हैं? 30वें ओलंपिक में नया इतिहास रचने के इरादे से अगर ये लंदन गये है तो इसकी अभी तक कोई झलक क्यूं नही दिख रही है? भारत ने पिछले बीजिंग ओलंपिक में निशानेबाजी, मुक्केबाजी और कुश्ती में तीन पदक जीते थे जो उसका ओलंपिक इतिहास में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। अभिनव बिंद्रा इस बार शुरूआती दौर मे ही बाहर हो चुके है…जो पिछ्ले बार के स्वर्ण पदक विजेता रहे थे। हां  गगन नारंग ने निशानेबाजी मे कांस्य पदक जीता है। बधाई ।

लंदन ओलंपिक में भारत का 81 सदस्यीय दल 13 खेलों में हिस्सा ले रहा है। इन खेलों में तीरंदाजी, एथलेटिक्स, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, पुरुष हाकी, जूडो, रोइंग, तैराकी, निशानेबाजी, टेबल टेनिस, टेनिस, भारोत्तोलन और कुश्ती शामिल हैं। तीरंदाजी,टेबल टेनिस, टेनिस,निशानेबाजी और बैडमिंटन मे हमारा हाल अभी तक बहुत अच्छा तो नही कहा जा सकता…लेकिन इस बीच गगन नारंग का प्रदर्शन एक राहत वाली बात रही है। 2008 में बीजिंग ओलंपिक से लेकर अब तक स्थितियां काफी बदल चुकी है, बीजिंग मे भारत को तीन पदक मिले थे पर ये भी एक सच्चाई है भारत कई और भी पदक के एकदम नज़दीक जा खडा हुआ था ।

अगर ओलंपिक के इतिहास मे झांके तो 1928 से 1980 के बीच के ओलंपिक खेलों में भारत को आठ स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य मिला । साल 1952 में भारत को महज़ एक पदक हासिल हुआ – कुश्ती में कांस्य। साल 1984 से लेकर 1992 भारत को एक भी पदक नहीं हासिल हुआ। साल 1996 से साल 2002 तक हर ओलंपिक खेल में भारत को केवल एक पदक ही मिला। साल 1996 में लिएंडर पेस, भारोत्तोलन में करनम मल्लेश्वरी को 2000 में कांस्य और 2004 में शूटिंग में राज्यवर्धन राठौर को रजत। अभिनव बिंद्रा, 2008 ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता..एक बडी व्यक्तिगत सफलता । मगर क्या इस बार एक या उससे ज्यादा स्वर्ण पदक पाने मे भारत सफल हो पायेगा?

भारत की सबसे बड़ी उम्मीद तीरंदाज़ दीपिका कुमारी, बोम्बाल्या देवी और सी. सुरो की टीम डेनमार्क के हाथों 210-211 के अंतर से हार चुकी है..अब व्यक्तिगत स्पर्धा की बारी है..कहते है हार का स्‍वाद मालूम हो तो जीत हमेशा मीठी लगती है..देखते है तींरदाजी मे आगे क्या होता है। बैडमिंटन में सायना नेहवाल लगातार शानदार प्रदर्शन कर रही ..उनसे काफी उम्मीद है..मगर इन सबों मे जो सबसे ज्यादा उम्मीद पैदा करता है वो है भारतीय मुक्केबाजी का दल ।मु्क्केबाज़ों में सबसे मज़बूत दावा महिला मुक्केबाज़ एमसी मैरीकॉम का होगा। पांच बार की विश्व चैंपियन एमसी मैरीकॉम भले ही अपना वजन वर्ग छोड़ लंदन ओलंपिक में 51 किलोग्राम में खेल रही हो लेकिन ये उनके पदक के दावे को कम नहीं करता। विजेंदर सिंह जैसे मुक्केबाज़ से भी पदक की उम्मीद की जा सकती हैं।

इस बीच कुश्ती में सुशील कुमार से पदक की उम्मीद की जा रही हैं। जाहिर है पिछ्ले कुछ वर्षों मे इन एथलीटो के लिए काफी कुछ किया गया है। सरकार खिलाड़ियों को विदेश भेजने के मामले में ज़्यादा उदारता के साथ निर्णय ले रही है, खेल पर होने वाला ख़र्च भी बढ़ा है। इसके अलावा एक बहुत ही महवपूर्ण बदलाव है खेलों में निजी कंपनियों और संगठनों का आगे आना। मगर जिस खेल मे भारतीयों का कभी दबदबा रहता था या यूं कह ले कि जिस खेल के बदौलत भारत को ओलंपिक मे पहचान मिली …हाकी …उसकी स्थिती बहुत अच्छी नही है। अगर यहां कुछ उलटफेर हो जाये तो इसे हम अच्छे भाग्य के अलावा अर कुछ नही कहेंगे।

मित्तल स्पोर्ट्स फांउडेशन भी भारतीय तीरंदाजों, मुक्केबाजों शूटरों के अलावा भी कई खिलाड़ियों की मदद कर रहा है। कोशिश तो पहले से काफी अधिक की जा रही है..पर फिर भी कुछ तो ऐसा है हमारे सिस्टम मे जिसके कारण उम्मीद से कही कम नतीजे सामने आ रहे है। हम हवा का रूख तो नही बदल सकते लेकिन उसके अनुसार अपनी नौका के पाल की दिशा जरूर बदल सकते हैं। भारतीय दल को आगे के दिनो के लिए इस बात को समझना होगा। नही तो इस बार काफी शोरगुल के बाद भी निराशा ही हाथ लगेगी… । इतनी बडी आबादी वाले देश से अगर चार पांच गोल्ड मेडलिस्ट ओलंपिक से न निकले तो यह तो मान ही लेना चाहिए कि भारतीय खेल व्यवस्था मे अभी भी काफी खोट है। वैसे ये माना गया है कि अच्छी व्यवस्था ही सभी महान कार्यों की आधारशिला है । इतिहास सदा विजेता द्वारा ही लिखा जाता है…उम्मीद करता हूं ओलंपिक जैसे महान खेल आयोजन में कुछ विजयी इतिहासकार भारत देश के भी होंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here